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यह मेरा दीवानापन है (यहूदी -१९५८)

यह मेरा दीवानापन है (यहूदी -१९५८) गीतकार : शैलेन्द्र , गायक : मुकेश , संगीतकार : शंकर जयकिशन दिल से तुझको बेदिली है मुझको है दिल का गुरूर तू यह माने या न माने लोग मानेंगे ज़रूर यह मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सुरूर तू न पहचाने तो है यह तेरी नज़रों का कुसूर यह मेरा दीवानापन … दिल को तेरी ही तमन्ना दिल को है तुझसे ही प्यार चाहे तू आये न आये हम करेंगे इंतज़ार यह मेरा दीवानापन … ऐसे वीराने में एक दिन घुट के मर जायेंगे हम जितना जी चाहे पुकारो फिर नहीं आयेंगे हम यह मेरा दीवानापन …

मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।।

                                   (फिल्‍म टावर हाऊस 1962 मुकेश लता मंगेश्‍कर) मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।।  बडा हसीन मेरे दिल का राजदार मिला । मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। है दिल में प्‍यार ,जुबा क्षुकी क्षुक नजरे । 2 अजब अदा से ,कोई आज पहली बार मिला ।।  मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। किसी के साथ मेरे दिल का हाल मत पूछो । ये खता है जमाने से इफतियार मिला  मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। किसी ने पूरे किये ,आज प्‍यार के वादे । 2 मेरी वफा का सिला ,मुक्षको शानदार मिला मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। मेरे चमन का हर फूल मुस्‍कुराने लगा । 2 वो क्‍या मिले कि मुक्षे मुफत में बहार मिला  मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। बडा हंसीन मेरे दिल का राजदार मिला मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।। किसी ने पूरे किये आज प्‍यार के वादे मेरी वफा का सिला मुक्षको शानदार मिला मै खुश नसीब हूं । मुक्षको किसी का प्‍यार मिला ।।

बुन्‍देली दोहे

                  बुन्‍देली दोहे ज्ञानी मारे ज्ञान से तो रोम रोम झड जाये । मुंरख मारे डेढपा , तो फूंट खपरियां जाये ।।                                    अधा धुन्‍द के राज मे भैया ,                                   गधा पंजीरी खाये रे । अंधरा से अंधरा ने कईयो , तुरतई पड है टूट रे । धीरे धीरे पूछ ले भैया , कैसे गयी थी फूंट रे ।।                         लम्‍बा तिलक मीठी वाणी                         ये देखों दगाबांज की निशानी राम ने मारे काऊ को ,राम ने पापी होये । आपई से मर जात है ,करके खोटे काम ।। भीडतंत्र का जमाना है और बहुत का राज है

मुंशियान बूढी (कहानी)डॉ कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल

राजयोग (कहानी) डॉ0कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल

                                                                                                                    राजयोग         निष्‍ठुर नियति के क्रूर विधान ने राधेरानी के हॅसते खेलते वार्धक्‍य जीवन में ऐसा विष घोला की बेचारी , इस भरी दुनिया में अपने इकलौते निकम्‍मे पुत्र के साथ अकेली रह गयी थी , राधेरानी की ऑखों में पुत्र के प्रति स्‍नेह था , परन्‍तु नौकरी छोड कर आने की नाराजगी भी थी । स्‍वर्गीय पति के जीवन काल की एक एक घटनायें किसी चलचित्र की भॉति मानस पटल पर घूमने लगी , मंत्री जी तो मंत्री जी थे ,   राजसी ठाट बाट के धनी ,   उच्‍च राजपूत कूलीन धनाढ्य , परिवार में जन्‍मे , हजारों की भीड में भी उनका दर्शनीय पुरूषोचित व्‍यक्तित्‍व अलग से ही अपने डील डौल तेजस्‍वी रौबदार चेहरा , उस पर किसी दस्‍यु की भॉति बडी बडी मूछों की वजह से अलग ही पहचाना जाता था , लाखों की भीड में वे अलग नजर आते थे । मंत्री पृथ्‍वी प्रताप सिंह राठौर अपने नाम के अनुरूप थे , राजनीति के मैदान में न जाने कितने विजयश्री प्राप्‍त कर उच्‍च मंत्रित्‍व पद पर सुशोभित हो चुके थे । उनके समकक्ष अन्‍य मंत्रियों की स्‍पर