उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया, जिनके कांधों पर बचपन बीता , सब को सम्हालतें सम्हालतें, जो दुनिया से रुक़सद हो गया उसका अंतिम बोझ भी , मुझसे कंधों पर उठाया न गया उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया जिसने जीवन भर कुछ ना माँगा , प्राणरहित देह निःशब्द अग्निदाह तक कांधें का अपना अधिकार मांग रहा है । उन्हें कांधे पर उठा कर , हमसे दो गज भी चला न गया, जिसने जीवन भर दिया , कभी हाथ ना फैलाया , वही आज भिक्षुक बन , अपना अधिकार मांग रहा है । उन्हें कांधे पर उठा कर , हमसे दो गज भी चला न गया । जन्मदाता के ऋण से बडा , पालपोस के पैरों पर खडें होने का , जिसने कभी अहसान न जताया , वह आज बस अग्नि दाह तक ही तो अपना अधिकार माँग रहा । उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया, डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
गोविंद भैया सो पी बे बारों , अब कोनऊ नई, दिखा रओं । ने शेर सो दहाड बे बारो , प्रदीप कियांऊ दिखा रये । गर्ग भैया सो भग बे बारों, अब कोनऊ नई आ रऔं । पाठक जी तो बिलकुलई चिमा गये । जाटव सो दिखातई नईया, ने गोविंद की आँखें फोडबें बारों, वर्मा कियांऊ दिखा रऔं । सरकारी गाडी उल्टाबें बारो , मिश्रा तो अब दिखातई नईया । धुरा बारें महराज ,भूले भटके आ रये । महिला प्रेमी बेनी भाई साहब , घरई में घर वाली की खोपडी खा रये । कुवरमन के खाना को डब्बा , अब संगे नई जा रऔं , कुंवर सहाब को गोस माँस , बनाबे बारों कोनऊँ नई दिखा रऔं, पशु विभाग में अब बा रोनक बची नईयाँ । सबरे निपटत जा रयें गर्राबें बारें अब बचे नईयाँ, एक शशीकांत सो दिखा रऔं । नेतागिरी करबें बारे, पाण्डेय, पटेल से ,अब नई आ रये । कन्छेदी सो चौकीदार अब ढूँढे नई मिल रऔं के एस चन्देल