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अगस्त, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काहे क्षूठी शान पे अकडे

 काहे क्षूठी ,शान पे अकडे , किस वहम मे खोया रे । भूल गया ये जग दो दिन का मेला रे । सारी दुनिया मे हूकूमत , तो कर सका ना सिकन्दर भी। न जुल्म का क्षण्डा फहरा सका चंगेज भी । आये मुसाफिर चले गये  कल भी कोई सिकंदर होगा  फिर कोई जुल्मे चंगेज आयेगा  ये दुनिया रैनबसेरा है । आया है ,तो जायेगा । ना तू आखरी इंसान है , तेरे पहले भी हुऐ है , इस तक्तों ताज के वा़रिश, तेरे बाद भी होगें, इंसानी कारनामों के किस्से, काहे क्षूठी शान पे अकडें किस वहम मे खोया रे । कोई नही यहाँ तेरा अपना, कुछ नही है ,यहाँ तेरा रे , मुसाफिरों की इस भीड़ मे, तू ही नही अकेला रे । मर्यादा का पाठ पढाने, आये थे ,भगवान श्रीराम भी , अज़र अमर न रावण रहा, न रहे भगवान भी, सभी आये इस भीड में, पर न जाने कहाँ खो गये । काहे क्षूठी शान पे अकडे , किस वहम में खोया रे । होगें तेरे कारनामें ,काबिले तारीफ, इतिहास ऐ तारीख मे फिर याद किये जायेगें, काहे क्षूठी शान पे अकडे , किस वहम मे खोया रे । डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल मो.न. 9926436304

आओं हम सब मिल कर

                          आओं हम सब मिल कर  आओं हम सब मिल कर , एक नया हिन्दुस्तान बनायें । जहाँ मज़हपों के नाम नफरतें न हो । जात पात ऊँच नीच की दीवारें न हों । मंदिर मे शंख नाद , मस्जिद में आजान हो,  गुरुद्वारें  गुरुवाणी ,चर्चों में घंटों की अवाज हो, आओं हम सब मिल कर , एक नया हिन्दूस्तान बनाये, मज़हपों के नाम पर, जों नफ़रते फैलाते । बन हम हिन्द की ताकत, सबको अमन चैन का पाठ पढ पढायें, आओं हम सब मिल कर , एक नया हिन्दुस्तान बनायें। जहाँ राम हो , रहीम हो ,सिख हों , ईसाई हो , भाई से भाई चारा हो , जहाँ नफरतों की कोई जगह न हो । आओं हम सब मिल कर ,  एक नया हिन्दुस्तान बनायें , तोड दो उन दिवारों को , जहाँ से नफ़रत की बूँ आये । चैन अमन की खुशबू हो जहाँ , हम ऐसा एक मुल्क बनायें । दुनिया की जंगी,नफरती अबो़ं हवा से दूर, एक सुनहरा, भारत बनायें , आओं हम सब मिल कर , एक नया हिन्दुस्तान बनायें । डाँ. कृष्णभूषण सिह चन्देल मो. 9926436304

अंधेरे तुम अपनी काली चादर ,

 अंधेरे तुम अपनी काली चादर , कितनी भी फैला दो । हम इंसान है , हर सितम से वाकिफ़ है । आज नही तो कल , मंझिल ढूढ ही लेगे । अंधेरे तब तेरा क्या होगा । रोशनी तो हमे रास्ता दिखला ही देगी , अंधेरे तुझें ,कौन राह बतलायेगा ।। डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल

मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है ।

 मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । मत डर रे राही, अब मंझिल आने को है । रात निकाल गई, अब सुबह होने को है ।  मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । गंम के बादल छट गये , अब बहारें ,आने को है ।  मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । तेरी डगर मे कांटे बिछे , या बरसे अंगारें, हो रात चाहे तुफानी, तू चल अपनी राहें , मत घबरा अंधेरों से, अब सूरज निकालने को है ।  मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । डाँ.कृष्णभूषण सिंह चन्देल M.9926436304

ये कफन के सौदागरो ,

 ये कफन के सौदागरों , किस बात का गु़मान करते हो । एक ना दिन तो तुम्हें भी , कफन ओढ कर शमशान तक जाना है

सुनों सुनों ऐ दुनिया वालों

  सुनों सुनों ऐ दुनियां वालों सुनों सुनों ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्थान , हमारा है ।। यहाँ के हर पर्वत, हर नदियों पर, अधिकार हमारा है ।। सुनों सुनों ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। वीर सिपाही हम भारत के, हम भारत माँ के लाल है । दुश्मनों के नापाक इरादे , कभी न पूरे हो ये हमारी आन है ।। सुनों सुनों ,ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। कश्मीर हमारा ,असम हमारा , धर्म निरपेक्ष ये राष्ट्रा हमारा । जाती अलग हो, भाषायें अलग हो , अलग हमारे रीति रिवाज भले हो , हम सभी एक स्वर में कहते । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। चर्चो में घंटे, मस्जिद में हो आजान, गुरू बैठे गुरू द्वारे , मन्दिर में हो राम , वो हिन्दुस्तान हमारा है ।। सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल