उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया, जिनके कांधों पर बचपन बीता , सब को सम्हालतें सम्हालतें, जो दुनिया से रुक़सद हो गया उसका अंतिम बोझ भी , मुझसे कंधों पर उठाया न गया उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया जिसने जीवन भर कुछ ना माँगा , प्राणरहित देह निःशब्द अग्निदाह तक कांधें का अपना अधिकार मांग रहा है । उन्हें कांधे पर उठा कर , हमसे दो गज भी चला न गया, जिसने जीवन भर दिया , कभी हाथ ना फैलाया , वही आज भिक्षुक बन , अपना अधिकार मांग रहा है । उन्हें कांधे पर उठा कर , हमसे दो गज भी चला न गया । जन्मदाता के ऋण से बडा , पालपोस के पैरों पर खडें होने का , जिसने कभी अहसान न जताया , वह आज बस अग्नि दाह तक ही तो अपना अधिकार माँग रहा । उन्हें कांधे पर उठा कर , हम से दो गज भी चला न गया, डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
साहित्य उन्माद मेरे हिन्दी साहित्य रचनाओं का एक संगृह है