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अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जो हे भईया नओ जमानों

 जो हे भईया नओं जमानों सिगरट ऊगरियों मे दबी  मों में गुटखा खाँ रये  पेले भईया मोटर साइकिल को फटफट केत हते , अब तो टू व्हीलर, बाईक  और कुजाने का का केरये ।  जो हे भईया नओ जमानों । पेले भईया कार को ,मोटर केत हते , अब तो फोर व्हीलर और कुजाने का का केरय ।  जो हे भईया नओ जमानों पेले भईया फटो पेन्ट कोऊ ने पेरत तो, अब तो निपकत सो फटो पेन्ट पेर रये  खब्बीसा सी कटिंग कराये,मो मे राजश्री दबाये ,  जो हे भईया नओ जमानों, अब सुन लो मतारी की, तो पेले भईया मतारी को ,माँ केत हते , अब तो मोम, मम्मी और कुजाने का का केरये ।  जो हे भईया नओ जमानों । पेले भईया पंगत होत हती , अब तो बफिंग, डिनर,लंच होत हे , गिद्ध से टूट परत हे सबरे, बेशर्मी से खुदाई उठा उठा खा रये ।  जो हे भईया नओं जमानों । पेले शान्ति से पंगत सबरे जेत हते , अब तो लूटा मारी सी हो रई । पेले सी ने पंगत रई, ने पेले सो प्यार , परसईया प्यार से केत हते, कक्का एक लुचई ओर, हाथ फैलाये कक्का केरये,भईया अब नई परसईया के रऔ, कक्का एक तो चल है कोरी हे मुर जे हे।  जो हे भईया नओ जमानों पेले भईया फिलम को,सिनेमा केत हते, अब तो मूवी ,थियेटर और कुजाने का का केरये

सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के ,

 सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के , मेरे सन्नाटे, इस बीराने में,एक ख़ामोश आवाज है । कब्र की लिखीं इबारतें, तुम पढ लोगे इंसानों , पर क्या तुम मेरी ख़ामोश आवाज़ को सुन सकते हो  कब्र मे दफ़न हर कंकाल,कभी जिन्दा इंसान हुआ करते थे  आज ख़ामोश कब्र मे दफन इंसानी कंकाल है । इस वीराने मे देखों कितने ख़ामोश है । यहाँ न कोई अपना पराया ,ना मजहपों की दीवार है । दुनिया के शोर शराबे से ,इस सन्नाटे मे सकून से लेटे , व़ासिदे कब्रिस्तान है । मै सन्नाटा हूँ व़ीरान हूँ ख़ामोश हूँ इसीलिये इंसानी बस्तीयाँ आबाद है । मै बदल गया तो सारी दुनिया शमशान होगी , मुर्दों को दफनाने दो ग़ज ज़मीन भी नशीब न होगी. मेरी कब्र,मेरे सन्नाटे मेरी बीरानीयों से , तुम ख़ौप खाते हो,यहाँ आना भी तुम्हे ग़वारा नही मै वीरान हूँ,सुनसान हूँ ,इंसानी कब्रेस्तान हूँ । सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के , इंतकाल के बाद म़ुर्दो,तुम जाओगें कहाँ , ख़ाक ए सुपुर्द करने,तेरे अपने ही यहाँ आयेंगे आ़खिर दफ़नाये तो यही जाओंगे । सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के , जीते जी तुम्हे सकुन न था, मेरे अ़गोश मे देखो,कितना सकून है । मै दरिया द

तुम बनों राम, तो मै रावण बन जाता हूँ

 तुम  बनों राम,तो मै रावण बन जाता हूँ । तुम मर्यादा का पाठ पठाओं , माता के कहने पर , वनवास चले जाओं भरत सा भाई तुम्हारा हो , भाई की खडाऊं को गद्दी मे रख , जो स्वयम सेवक जो कहलाता है । तुम  बनो रामपाल,तो मै रावण बन जाता हूँ । मृत्युलोक में ,भगवान ने लीला रचाने , लिया जब राम आवतार , राम का दुश्मन बनने कोई नही था तैयार , तब उस दशानन ज्ञानी ध्यानी ने , खलनायक का आमंत्रण स्वीकार किया , राम के हाथों ,मरने का स्वभाग्य स्वीकार किया , रावण जैसा महाज्ञानी क्या ये नही जानता था तीनो लोकों के स्वामी से युद्ध जीत नही सकता , प्रभु हाथों से मृत्यु मिले , यही कामना थी उसकी ,

रचना संसार

रचना संसार की भीड़ से, मै गुजरात गया रचनाकारों की कलम से निकलती , धूँप छाँओं से रंगें शब्दों में वो तसवीरें थी , जिसमें सावन भादों सी मिठास थी ।  कहीं खुशी के मेले ,कहीं गमों का शोर था  । रचनाओं के विचार ,शब्दों के उधेड बुन , की बातें निराली थी । जो कहती थी , ठहर जा, ये रचना संसार , की जादुई नगरी है । आया तो तू अपनी मर्जी से, मगर जायेगा मेरी मर्जी से । ठहर जा, देख मेरे शब्दों के संसार में, तूझे यहाँ खुशीयाँ और गम ही नही, चल के देख तो मेरे साथ । किसी मोड पर तुझें राम और रहीम मिलेंगे , किसी निरजन सूने ख़ामोंशियों में , कब्रिस्तान और मरघट भी मिलेंगे।  कहीं किसी की डोली उठेगी, कहीं अर्थियों के बोझ मिलेंगे । मै रचना संसार हूँ । खामोश हूँ, पर निःशब्द नही, मेरी कलम की ताकतों से सत्तायें बदल जाती है । इतिहास गवाह है, मेरे शब्दों की ताकत से, खूबसूरत दुनिया की तसवीर को अपने अंदाज मे कह रही थी । ये वो रचना संसार है । रचना संसार की भीड़ से, मै गुजरात गया । रचनाकारों की कलम से निकलती , धूँप छाँओं से रंगें शब्दों में वो तसवीरें थी । जो कह रही थी मै ख़ामोश हूँ निःशब्द नही , मै वो रचना संसार हूँ । जिन्दगी