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साथ साथ - डॉ0 के0एस0 चन्‍देल

 

                     साथ साथ

 

हम साथ साथ तो चलते रहे ।

रेल की पटरियों की तरह ।।

पर कभी न मिल सके ।

जमीन आंसमा की तरह ।।

               एक दूजे से नफरत तो थी नही,

              दुश्‍मनों की तरह ।

              मगर एक ही छत के नीचे ।

             रहते थे परायों की तरह ।।

 हम साथ साथ तो चलते रहे ।

रेल की पटरियों की तरह ।।

सावन भादों ऐसे गुजरें ।

पतझड में सूखें पत्‍तों की तरह ।।

               कभी सपने हुआ करते थे बेर्दर्दी ऑखों में ।

              अब ऑसू बरसतें है बारिश की तरह ।।

कोई ऑसू पोछने वाला भी नही था ।

हमर्दद अपनों की तरह ।।

बेर्दर्दी जमाना होता तो कोई गम न था ।

अपने ही पराये हो गये सपनों की तरह ।।

                जिनके लिये खुशियॉ लुटाई ।

               वो हर पल रहे परायों की तरह ।।

 

      डॉ0 के0एस0 चन्‍देल

  वृन्‍दावन वार्ड गोपालगंज सागर म0प्र0

     मो0-9926436304

 

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